महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय - History of Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय - History of Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप का इतिहास, जीवन परिचय, उनकी पत्नि और हल्दीघाटी का युद्ध - (History of Maharana Pratap, Maharana Pratap wife, battle of Haldi ghati in Hindi) 

दोस्तों आज के इस पोस्ट में आप सभी को महाराणा प्रताप के बारे में बताया गया है। आप सभी को इनके बारे में जानकारी जरुर होगी परन्तु इस पोस्ट में महाराणा प्रताप का इतिहास और जीवन परिचय के बारे में विस्तार से बताया गया है।

महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के वीर योद्धाओ में से एक थे जिन्होंने मुगलों के सामने कभी भी घुटने नही टेके थे। उनके वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उनका जिक्र कई बार अकबर ने भी किया था और उनके मरने के बाद शोक भी व्यक्त किया था। तो चलिए जानते है महाराणा प्रताप का इतिहास के बारे में जहाँ आपको उनके जीवन परिचय, महाराणा प्रताप की पत्नि और उनके द्वारा किये गए युद्ध के बारे में बताया गया है।

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय.

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप का पूरा नाम राजा महाराणा प्रताप सिंह था उनका नाम इतिहास में वीरता और प्रण के लिये अमर है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। 

उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 ई में महाराणा उदय सिंह एवं माता रानी जयवंताबाई के घर हुआ था। महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता,भीलों के साथ ही वे युद्ध कला सीखते थे


महाराणा प्रताप का इतिहास
Maharana Pratap 


572 में उदय सिंह की मृत्यु के बाद, रानी धीर बाई चाहती थी कि उसका बेटा जगमाल उसका उत्तराधिकारी बने लेकिन वरिष्ठ दरबारियों ने प्रताप को सबसे बड़ा पुत्र, अपने राजा के रूप में पसंद किया।महाराणा प्रताप का वैवाहिक जीवन काफी दिलचस्प था। महाराणा प्रताप ने अपनी जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी

महाराणा प्रताप की पत्नियाँ.

महाराणा प्रताप अपनी जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी और उनके नाम आप सभी को निम्नलिखित में बताया गया है।

महाराणा प्रताप की पत्नियों के नाम -

  • महारानी अजब्धे पंवार
  • अमरबाई राठौर
  • शहमति बाई हाडा
  • अलमदेबाई चौहान
  • रत्नावती बाई परमार
  • लखाबाई
  • जसोबाई चौहान
  • चंपाबाई जंथी
  • सोलनखिनीपुर बाई
  • फूलबाई राठौर
  • खीचर आशाबाई

महाराणा प्रताप का शासन.

जब महाराणा प्रताप को अपने पिता के सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमाल सिंह, ने बदला लेने के लिए मुगल सेना में शामिल हो कर बगावत कर दिया। मुगल राजा अकबर ने उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी और सहायता के कारण उसे जहज़पुर शहर की सल्तनत पुरस्कार के रूप मे दिया।

जब राजपूतों ने चित्तौड़ को छोड़ दिया, तो मुगलों ने जगह पर नियंत्रण कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को वह अपने अधीन करने के उनके प्रयास असफल रहे। अकबर द्वारा कई दूत भेजे गए थे जिन्होंने एक गठबंधन पर प्रताप के साथ बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन कुछ काम नहीं आया।

हल्दीघाटी का युद्ध.

हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है यह युद्ध 18 जून 1576 ई. को खमनोर एवं बलीचा गांव के मध्य तंग पहाड़ी दर्रे से आरम्भ होकर खमनोर गांव के किनारे बनास नदी के सहारे मोलेला तक कुछ घंटों तक चला था। युद्ध में निर्णायक विजय किसी को भी हासिल नहीं हो सकी थी। इस युद्ध मे महाराणा प्रताप के सहयोगी राणा पूंजा का सहयोग रहा। 

इसी युद्ध में महाराणा प्रताप के सहयोगी झाला मान, हाकिम खान,ग्वालियर नरेश राम शाह तंवर सहित देश भक्त कई सैनिक देशहित बलिदान हुए, उनका प्रसिद्ध घोड़ा चेतक भी मारा गया था।

इस युद्ध में कुल 20000 महाराणा प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है। कई मुश्किलों का सामना करने के बाद भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं माना और अपने पराक्रम को दर्शाया इसी कारण उनका पराक्रम और नाम इतहास के पन्नो पर चमक रहा है। 

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए थे। अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया 

महाराणा प्रताप का हल्दी घाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में ही व्यतीत हुआ। अपनी गुरिल्ला युद्ध नीति द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी। महाराणा प्रताप चित्तौड़ छोड़कर जंगलों में रहने लगे। महारानी, सुकुमार राजकुमारी और कुमार घास की रोटियों और जंगल के पोखरों के जल पर ही किसी प्रकार जीवन व्यतीत करने को बाध्य हुए। 

अरावली की गुफाएं ही अब उनका आवास थीं और शिला ही शैया थी। महाराणा प्रताप को अब अपने परिवार और छोटे-छोटे बच्चों की चिंता सताने लगी थीमुगल चाहते थे कि महाराणा प्रताप किसी भी तरह अकबर की अधीनता स्वीकार कर 'दीन-ए-इलाही' धर्म अपना लें। इसके लिए उन्होंने महाराणा प्रताप तक कई प्रलोभन संदेश भी भिजवाए, लेकिन महाराणा प्रताप अपने ‍‍निश्चय पर अडिग रहे। 

प्रताप राजपूत की आन का वह सम्राट, हिन्दुत्व का वह गौरव-सूर्य इस संकट, त्याग, तप में अडिग रहा। धर्म के लिए, देश के लिए और अपने सम्मान के लिए यह तपस्या वंदनीय है।

महाराणा प्रताप और अकबर का युद्ध. 

मुगल बादशाह अकबर ने विक्रम संवत 1635 में एक और विशाल सेना शाहबाज खान के नेतृत्व में मेवाड़ भेजी। इस विशाल सेना ने कुछ स्थानीय मदद के आधार पर वैशाख कृष्ण 12 को कुम्भलगढ़ और केलवाड़ा पर कब्जा कर लिया तथा गोगुन्दा और उदयपुर क्षेत्र में लूट-पाट की। ऐसे में महाराणा प्रताप ने विशाल सेना का मुकाबला जारी रखते हुए अंत में पहाड़ी क्षेत्रों में पनाह लेकर स्वयं को सुरक्षित रखा और चावंड पर पुन: कब्जा प्राप्त किया। शाहबाज खान आखिरकार खाली हाथ पुनः पंजाब में अकबर के पास पहुंच गया।

चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से पुन: उद्धार कर लिया। उदयपुर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। विचलित मुगलिया सेना के घटते प्रभाव और अपनी आत्मशक्ति के बूते महाराणा ने चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा संपूर्ण मेवाड़ पर अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया गया।

महाराणा प्रताप की मृत्यु.

अपने अंतिम समय मे महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुविधाओं में जुट गए परन्तु 11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597, 56 वर्ष की उम्र में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु मुग़ल सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़ कर हुए घावों और चोटों के कारण हुई।

एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ गए।

मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया.

अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं थी, बल्कि अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, जब की एक तरफ महाराणा प्रताप जी थे जो अपनी भारत मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। 

महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जनता था की महाराणा प्रतात जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आंसू आ गए।

(अकबर कभी जीता नहीं महाराणा कभी हारे नहीं)

निष्कर्ष 

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सब को महाराणा प्रताप के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सब ने महाराणा प्रताप का इतिहास, महाराणा प्रताप कौन थे, महाराणा प्रताप का जीवन परिचय उनसे जुड़ी अन्य जानकारी के बारे में भी जाना मुझे उम्मीद है की आपको उनसे जुड़ा यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा।          

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