गौतम बुद्ध की जीवनी (Life story of Gautam Buddha in Hindi)

गौतम बुद्ध की जीवनी (Life story of Gautam Buddha in Hindi)


दोस्तों भारत देश में एक से बढ़ कर एक राजा महाराजा , दार्शनिक, धर्मगुरु और भी कई तरह के लोगो ने जन्म लिए। जिन्होंने अपने पुरे जीवन दुसरो की सेवा में लगा दिए। लेकिन उन्मे से बहुत कम हुए जिन्हें लोग भगवान का दर्जा देते है। लेकिन आज हम जिनके बारे में बात करेंगे उन्हें लोग आज भी भगवान गौतम बुद्ध के रूप में जानते है।

गौतम बुद्ध एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। जिन्हें लोग महात्मा बुद्ध के नाम से भी जानते है। महात्मा बुद्ध ने सिद्धार्थ के रूप में एक राजा के घर जन्म लिया था, लेकिन अपनी शादी के कुछ समय बाद उन्होनें अपनी पत्नी और बच्चे का त्याग कर परिवारिक मोह-माया से अलग होकर वे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बन गए


Gautam Buddha


भगवान गौतम बुद्ध का जीवन परिचय


   नाम  गौतम बुद्ध
   जन्म  563 ईसा पूर्व
  जन्म स्थान  लुंबिनी (कपिलवस्तु), नेपाल
  बचपन का नाम  सिद्धार्थ
   पिता का नाम  शुद्धोधन
  माता का नाम  मायादेवी
  सिद्धार्थ का अर्थ    जिसका जन्म सिद्धि प्राप्ति के लिए हुआ होे  
  पत्नी का नाम  यशोधरा
  पुत्र का नाम  राहुल
  ज्ञान की प्राप्ति  बोधगया में
  प्रथम उपदेश  सारनाथ में
  मृत्यु  483 ईसा पूर्व (80 वर्ष की आयु में)

 

धर्म और ज्ञान को नई दिशा देने वाले महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नेपाल में हुआ था। इस समय भारत को ‘जंबूद्वीप’ के नाम से जाना जाता था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था। जो कि शाक्य के राजा थे। और माता का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं। महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ के जन्म के कुछ साल बाद उनके माता का निधन हो गया था। इस कारन उनका पालन पोषन उनकी मौसी ने किया था।

बाल्यावस्था एवं शिक्षा

एक बार सिद्धार्थ के पिता ने भविष्य जानने के लिए विद्वान एवं साधुओं को बुलाया। उन्मे से एक साधु ने बताया की ‘‘यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट् होगा और पृथ्वी पर राज करेगा या बुद्ध होगा। बुद्ध होने की बात सुन राजा शुद्धोधन डर जाते है। इस घटना के पश्चात उन्होंने आदेश दिया की सिद्धार्थ महल से बाहर न जा पाए , और इसके जरुरत के हर सामान इसे महल में ही दिया जाये। ताकि सिद्धार्थ गृहस्थ जीवन का त्याग करके सन्यास न लें। कहा जाता है की सिद्धार्थ के लिए 3 ऋतुओं के हिसाब से 3 महल भी बनाए थे। जिसमें नाच-गान और ऐशो आराम की सभी व्यवस्थाएं मौजूद थी लेकिन बालक सिद्धार्थ का मन बचपन से ही इन आडम्बरों से दूर ही था।

सिद्धार्थ के शिक्षा की व्यवस्था भी महल में ही करवाया गया। बौद्धिक और आध्यात्मिक विषयों में सिद्धार्थ की बहुत रुचि थी, इसके कारण इनके गुरु ने इन्हें वेद और उपनिषदों की शिक्षा दी। राज्यसभा की बैठकों और सभाओं मैं उपस्थित होकर इन्होंने शासन कला की शिक्षा ली

विवाह और गृह त्याग

16 साल की उम्र में उनके पिता ने सिद्धार्थ की शादी राजकुमारी यशोधरा से करा दी। ताकि सिद्धार्थ परिवारिक मोह माया में बंध जाएं, और वो सन्यास ग्रहण ना कर सके। कुछ समय पश्चात यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल रखा गया।

कहा जाता है की एक बार राजकीय उत्सव में भाग लेने के लिए सिद्धार्थ महल से दूर जा रहे थे। तभी उन्हें मार्ग में एक वृद्ध कमजोर व्यक्ति दिखाई देता है, जो लाठी के सहारे झुक कर चल रहा था। यह देख उनका मन बहुत ही अधीर हो जाता है। कुछ दूर आगे जाने पर उन्हें एक शव दिखाई दिया, जिसे लोग कंधे पर रखकर ले जा रहे थे। ये सब देखने के बाद उन्हें सभी भोग विलास की चीजें व्यर्थ लगने लगी। और मन में विरक्ति की भावना ने जन्म ले लिया। जब वे उत्सव में पहुचे तो उन्होंने वहा संन्यासी को देखा, जिसके चेहरे पर संतोष दिखाई दिया, जिसे देखकर राजकुमार सिद्धार्थ काफी प्रभावित हुए और उन्हें सुख की अनुभूति हुई। और इस घटना के बाद उन्होंने रात्रि के समय पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़ ज्ञान की प्राप्ति में निकल पड़े।

ज्ञान प्राप्ति और उनके विचारो का प्रसार

ज्ञान की प्राप्ति के लिए सिद्धार्थ ने गया के समीप ऊरविल्व के जंगलों में 6 साल तक कठोर तपस्या की परंतु उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। लेकिन सिद्धार्थ ने कठोर तपस्या जारी रखा और इसके बाद 528 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात 35 वर्षीय सिद्धार्थ को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई। उस पीपल के वृक्ष को लोग बोधिवृक्ष के नाम से जानने लगे। तथा गया में स्थित यह स्थान को बोधगया के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और इस तरह (गौतम बुद्ध ) सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन गए। ज्ञान प्राप्ति के बाद वर्तमान बिहार के राजगीर स्थान पर जाकर महात्मा बुद्ध ने भिक्षा मांगकर अपना तपस्वी जीवन शुरू किया। इस दौरान मगध का राजा और चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिम्बिसार ने गौतम बुद्ध को पहचान लिया और उनके उपदेश सुनकर उन्हें सिंहासन पर बैठने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

गौतम बुद्ध ने लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलकर सरल मार्ग अपनाने का ज्ञान दिया। जबकि उन्होंने अपने धर्म का संस्कृत की जगह उस समय की सरल भाषा “पाली” में प्रचार किया। उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दीया तथा वहां कुछ लोगो को अपना अनुयाई बनाया तथा उन्हें भी धर्म के प्रचार के लिए भेज दिया।

महात्मा बुद्ध ने सभी दुखों का निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बताया, तथा इच्छा और आकांक्षा को सभी दुखों का कारण बताया। महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का समर्थन किया। गौतम बुद्ध को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का रूप माना गया था इसलिए इन्हें भगवान बुद्ध कहा जाने लगा। उस दौरान महात्मा बुद्ध द्दारा दिए गए उपदेशों को हर किसी तक पहुंचाने की कोशिश की गई और बड़े पैमाने पर लोगों ने बौद्ध धर्म के उपदेशों का अनुसरण भी किया। भारत के अलावा भी चीन, थाईलैंड, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशों ने बौद्ध धर्म को अपनाया था।

माना जाता है की महात्मा बुद्ध के उपदेशों का प्रसार सबसे ज्यादा अशोक सम्राट ने किया। कलिंग युद्ध में हुए मार काट से व्यथित होकर सम्राट का ह्रदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को अपनाते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुंचाया। यही नहीं अशोक सम्राट ने विदेशों में भी बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

महात्मा बुद्ध सारी उम्र धर्म का प्रचार करते रहे। अस्सी वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका देहावसान हो गया। वे मर कर भी अमर हो गए। आज भी लोग उन्हें पूजते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा और उनके विचार

बुद्ध पूर्णिमा, हिन्दी महीने के दूसरे महीने में मनाई जाती है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसलिए इसी दिन को गौतम बुद्ध की जयंती या फिर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।

  • एक गलती दिमाग पर उठाए भारी बोझ के सामान है।
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  • हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं, इसलिए सकारात्मक बातें सोचें और खुश रहें।
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  • दर्द तो निश्चित है, कष्ट वैकल्पिक है।
  • आप तब तक रास्ते पर नही चल सकते जब तक आप खुद अपना रास्ता नही बना लेते।




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