दोस्तों कहा जाता है की महावीर स्वामी ने राज्य परिवार में जन्म लेने के पश्चात भी राजसी सुखो का त्याग कर दिया था। भगवान महावीर स्वामी को लोग जैन धर्मं के 24वें तीर्थकर के रूप में जानते है। जैन धर्म के विद्वान महात्माओं को तीर्थकर कहा जाता था। उन्ही के याद में पूरे भारत वर्ष में महावीर जयंती बड़े धूम धाम के साथ मनाई जाती है। महावीर जयंती हर वर्ष चैत्र माह के 13वे दिन मनाई जाती है, जो मार्च या अप्रैल के माह मे आती है। इस दिन पूरे भारत मे सरकारी छुट्टी रहती है।
महावीर स्वामी का जीवन हर जाति ,धर्मं ,अमीर ,गरीब हर वर्ण के लोगो के लिए प्रेरणादायक है। महावीर स्वामी ने पशुबलि, हिंसा और जाति-पाति के भेदभाव आदि की कड़ी निंदा की। उनका मानना था की हर जाति और धर्मं के लोगो को मिलजुल कर रहना चाहिए।
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Mahaveer swami |
महावीर स्वामी का जीवन और वैराग्य
599 ईसा पूर्व में चैत्र महीने की त्रयोदशी के वैशाली (बिहार) के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश में जन्मे महावीर स्वामी जैन धर्मं के 24वें तीर्थकर थे। इनके पिता का नाम महाराज सिद्धार्थ और माता महारानी त्रिशला थी। महावीर स्वामी को बचपन में उनके कई नामो से बुलाते थे जिन्मे सन्मति, वर्धमान, महावीर, श्रमण, आदि नाम प्रमुख है। इंन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने की वजह से वे जितेन्द्रिय या ‘जिन’ भी कहलाए।
राजकुल में जन्म लेने के कारण महावीर स्वामी का शुरुआती जीवन अत्यंत आनंद और सुखमय व्यतीत हुआ। और बड़े होने पर उनके माता-पिता ने उनका विवाह यशोदा नाम की एक सुंदर कन्या से कर दिया। जो वसंतपुर के महासामंत समरवीर की बेटी थी। जिनसे उनको प्रियदर्शनी नाम की एक बेटी हुई।
महावीर स्वामी का गृह त्याग और धर्म प्रसार
सांसारिक जीवन से आंतरिक शांति न मिल सकने के कारन महावीर स्वामी ने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात 30 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया और कठोर तपस्या में लीन हो गये। 12 वर्ष के कठोर तप के बाद वैशाखी की दसवीं के दिन जम्बक में ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्व वृक्ष के नीचे सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्हें लोग केवलिन नाम से जानने लग गये।
ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी ने 30 वर्षो तक ज्ञान और अनुभव का प्रचार प्रसार करते रहे। उनके धर्म प्रचार के मार्ग में कई कठिनाइयां आई, फिर भी वे लगे रहे। अनपढ़, असभ्य तथा रूढ़िवादी लोग उनका विरोध करते थे। परंतु कभी भी उन्होंने अपने विरोधियों से भी बैर की भाव ना रखा। जिससे जनसाधारण लोग उनसे अत्यधिक प्रभावित होते थे।
जैन धर्म और पंचशील सिद्धान्त
जैन धर्मं में महावीर से पहले 23 तीर्थकर हुए उनके बाद महावीर स्वामी 24वें तीर्थकर थे। उन्होंने काशी, कौशल, मगध, अंग, मिथिला आदि प्रदेशों में पैदल घूम कर अपने उपदेशों का प्रचार किया। जैन साहित्य के अनुसार बिंबिसार तथा उनके पुत्र महावीर स्वामी के अनुयायी बन गए थे। भगवान महावीर ने अहिंसा को जैन धर्म का आधार बनाया। उन्होंने तत्कालीन हिन्दु समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया, उन्होंने जियो और जीने दो के सिद्धान्त पर जोर दिया।
जैन धर्म के प्रमुख पर्व
- भगवान महावीर जयंती
- पर्युषन पर्व प्रारंभ दिवस
- वर्षीतय प्रारंभ दिवस
- अक्षय तृतीया
- संवत्सरी महापर्व
- भगवान पार्श्वनाथ जन्मदिवस
- भगवान महावीर दीक्षा दिवस
पंचशील सिद्धान्त:- महावीर स्वामी द्धारा दी गई शिक्षाएं हीं जैन धर्म के मुख्य पंचशील सिद्धांत बने। इन सिद्धांतों में सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्रमचर्य शामिल है।
सत्य:
भगवान महावीर का मानना था की एक बेहतर इंसान बनने के लिए सबसे जरूरी है सत्य। उन्होंने सत्य को सबसे अधिक शक्तिशाली और महान बताया है। और सत्य का साथ न छोड़ने की सलाह दिए।
अहिंसा:
अपने मन में दया का भाव रखो, जियो और जीने दो , हिंसा मत करो और जितना अपने लिए प्रेम रखते हो उतना ही दुसरो से करो।
अस्तेय:
महावीर स्वामी का मानना था अगर आप किसी दुसरो की वस्तु को बिना उसके दिए बस लेने की चेष्टा करते है। तो वह पाप है, अथार्थ चोरी के सामान है।
अपरिग्रह:
अपरिग्रह को लेकर महावीर स्वामी का मानना था की मनुष्य को किसी वस्तु का मोह नही करना चाहिए। और न ही इसके बारे में किसी को सलाह देना चाहिए क्योंकी ये मनुष्य जीवन नस्वर है। उन्होंने ने बताया ऐसा करने वाले मनुष्य को कभी दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता।
ब्रह्रमचर्य:
महावीर स्वामी ने ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ बताया है। उनका मानना था, जो पुरुष इसका पालन करते है। वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं अथार्थ जन्म मरण से ऊपर उठ जाते है।
अनमोल वचन और मोक्ष प्राप्ति
- सभी के प्रति दया रखो, नफरत एवं घृणा करने से विनाश होता है।
- जिओ और जीने दो।
- क्रोध हमेशा से क्रोध को जन्म देते आई है जबकि प्रेम हमेशा प्रेम को जन्म देते हैं। अथार्थ क्रोध को छोड़ प्रेम को अपनाये।
भगवान महावीर ने 527 ईसापूर्व, 72 वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मोक्ष प्राप्त किया, भगवान महावीर की मृत्यु के दो सौ साल बाद, जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदायों में बंट गया।
पावापुरी में स्थित जल मंदिर जिसके बारे में लोगो का मानना है कि यही वह स्थान है जहाँ से महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।