हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य का दूसरा शासक था जो बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था यही कारण बाबर ने हुमायूँ को अपना उतराधिकारी भी घोषित किया था। हुमायूँ अपने पिता के आज्ञा के अनुसार पुरे साम्राज्य का बटवारा सभी भाइयो में बराबर किया था। उसने अस्करी को संभल, कामरान को काबुल और कंधार, हिन्दाल को अलवर और अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शाँ का जागीर दिया था।
बाबर के मृत्यु के कुछ दिन बाद ही 23 वर्ष की आयु में हुमायूँ 1530 को दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसके शासक बनने के बाद सबसे ज्यादा परेशानी का सामना अपने भाइयो से करना पड़ा। तो आइये जानते है हुमायूँ से जुड़ी और भी महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में -
हुमायूँ का जीवन परिचय.
पूरा नाम | नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ |
जन्म | 6 मार्च, सन् 1508 |
जन्म स्थान | क़ाबुल |
माता-पिता | माहम बेगम, बाबर |
पत्नियाँ | चाँद बीबी, हमीदा बानू बेगम बिगेह बेगम, हाज़ी बेगम शहज़ादी ख़ानम, बेगा बेगम मिवेह-जान, माह-चूचक |
पुत्र / पुत्रियाँ | मिर्ज़ा मुहम्मद हाकिम बख्तुन्निसा बेगम बख़्शी बानु बेगम अकीकेह बेगम |
मृत्यु | जनवरी , 1556 दिल्ली , भारत |
हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य का दूसरा शासक था जिसका पूरा नाम नासीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं था। हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, सन् 1508 क़ाबुल में हुआ, इसके पिता का नाम बाबर और माता का नाम माहम बेगम था।
23 साल की उम्र में हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा लेकिन इसके बाद वह शेरशाह सूरी से हार कर भारत छोड़ कर चला गया इसके बाद में हुमायूँ ने सिकंदर को पराजित कर पुनः दिल्ली का कार्य भार संभाला। हुमायूँ की मृत्यु 1 जनवरी, सन् 1556 को दिल्ली में हुआ जिसके बाद उसके बेटे अकबर ने उसका राज्य भार संभाला।
हुमायूँ का बचपन और शुरूआती जीवन.
हुमायूँ मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का सबसे बड़ा और बुद्धिमान पुत्र था जिसका जन्म 6 मार्च, सन् 1508 को क़ाबुल में हुआ था। हुमायूँ के तीन और भाई थे जिसका नाम हिंदाल, कामरान मिर्ज़ा और अस्करी था जो स्वभाव में हुमायूँ के विपरीत था।
हुमायूँ अपने पिता के आज्ञा के अनुसार पुरे साम्राज्य का बटवारा सभी भाइयो में बराबर किया था।उसने अस्करी को संभल, कामरान को काबुल और कंधार, हिन्दाल को अलवर और अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शाँ का जागीर दिया था परन्तु वे सब इतना लेकर भी चुप रहने वालो में से नही थे और बराबर हुमायूँ से युद्ध करते रहते थे।
हुमायूँ को 12 वर्ष की आयु में ही बदख्शां के सूबेदार के रुप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद हुमायूँ को बाबर के मौत के ठीक 4 दिन बाद 1530 को मुग़ल साम्राज्य का दूसरा शासक घोषित किया गया था। हुमायूँ का शासनकाल 1530 से लेकर 1540 तक था इसके बाद उसे शेरशाह सूरी से हार कर वापस लौटना पड़ गया था।
दौहारिया का युद्ध.
दौहारिया का युद्ध मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान सरदार महमूद लोदी के बीच साल 1532 में लड़ा गया था इस युद्ध में महमूद लोदी की हार और हुमायूँ का जीत हुआ था। यह युद्ध दौहारिया नामक स्थान के बीच हुआ था यही कारण इस युद्ध का नाम दौहारिया पड़ा।
हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच युद्ध.
1535 के मध्य में गुजरात के शासक बहादुर शाह कई युद्ध लगातार जीते जा रहा था और अपने राज्य विस्तार बहुत तेज़ी से कर रहा था जिससे बहादुर शाह, हुमायूँ को खटकने लगा था। बहादुर शाह की बढती शक्ति को दबाने के लिए हुमायूँ ने सारंगपुर में उसकी सेना पर आक्रमण कर दिया और उस युद्ध को जीत लिया।
एक के बाद एक करके कई युद्ध जितने के बाद हुमायूँ की नज़र बिहार और बंगाल पड़ी जहा पर शेरशाह सूरी का बोलबाला था क्योकि शेरशाह एक बहुत ही शक्तिशाली अफगान शासक था जिसका वर्चस्व बिहार और बंगाल में था। शेरशाह की शक्ति को दबाने के लिए हुमायूँ ने चुमानगढ़ के किला पर सन 1538 में हमला कर दिया और कई महीने तक चले इस युद्ध में आखिरकार हुमायूँ विजयी हुआ और अपने मनसूबे में कामयाब हो गया।
चौसा का युद्ध.
चौसा का युद्ध मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान शासक शेरशाह के बीच बक्सर के पास चौसा नामक स्थान के पास सन 29 जून 1539 को हुआ था। जब हुमायूँ बंगाल में जीत के पश्चात लौट रहा था उसी समय शेरशाह ने बदला लेने के लिए उसपर आक्रमण कर दिया था। चौसा के युद्ध में मुग़ल को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और उसके बहुत सैनिक भी मारे गये थे।
चौसा के युद्ध में मुग़ल शासक हुमायूँ को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी थी इस तरह इस युद्ध में मुग़ल को एकतरफा हार का सामना करना पड़ा और शेरशाह सूरी विजयी हुआ।
चौसा युद्ध में मिली जीत के बाद उसे शेरशाह की उपाधि से नवाजा गया था। मुग़लो का इसके बाद पतन हो गया और उसका शासक हुमायूँ अपनी जान बचाने के लिए अपने भाइयो का सहारा लिया।
कन्नौज (बिलग्राम) का युद्ध.
चौसा के युद्ध के बाद एक बार फिर मुग़ल शासक हुमायूँ और अफगान शासक शेरशाह के बीच एक युद्ध बिलग्राम और कन्नौज में 17 मई 1540 को लड़ा गया। इस युद्ध में हुमायूँ के तरफ से उसके दो भाई अस्कारी और हिन्दाल भी लड़ रहे थे परन्तु एक बार फिर इस युद्ध में हुमायूँ को हर का सामना करना पड़ा और शेरशाह दोबारा हुमायूँ को हराने में सफल रहा।
कन्नौज का युद्ध हुमायूँ के लिए निर्णायक युद्ध था क्योकि इसके बाद उसे दिल्ली छोड़ भागना पड़ा और वह सिंध में जाकर छुप गया था। 1540 से लेकर 1555 तक हुमायूँ निर्वासित जीवन व्यतीत किया और अपने जीवन के 15 वर्ष निर्वासित रहा। हुमायूँ ने इसी अवधी के दौरान हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरू की पुत्री हमीदाबानों बेगम से निकाह कर लिया जिसके बाद उससे एक पुत्र अकबर पैदा हुआ जो हुमायूँ के बाद मुग़ल साम्राज्य का शासक बना और उसके साम्राज्य को आगे बढाया।
सरहिन्द का युद्ध.
सरहिंद का युद्ध 15 मई 1555 को मुगलों और अफगानों के बीच हुआ सरहिंद के पास हुआ जिसमे मुगलों का नेतृत्व बैरम खां ने और अफगानों का नेतृत्व सिकंदर सुर ने किया था इस युद्ध में मुगलों की जीत और अफगानों की हार हुई थी।
इस युद्ध के पश्चात एक बार फिर मुग़ल दिल्ली में अपना सता स्थापित करने में कायम हुए था और 23 जुलाई 1555 को एक बार फिर हुमायूँ को मुगलों का शासक घोषित किया गया।
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हुमायूँ की मृत्यु.
सरहिंद युद्ध को जितने के बाद हुमायूँ को दूसरी बार सता में लाया गया था परन्तु इसके बाद वह ज्यादा दिन तक जीवित नही रह सका और 1 जनवरी 1556 को दीनपनाह भवन की सीढियों से गिर कर उसकी मृत्यु हो गयी।
हुमायूँ के मृत्यु के बाद उसके बेटे अकबर को मुग़ल साम्राज्य का तीसरा शासक घोषित किया। शासक बनने के समय अकबर महज 14 वर्ष का था इसी कारन बैरम खां को उसका अंगरक्षक बनाया गया जो अकबर का बहुत ही वफादार सेनापति भी था। हुमायूँ के मौत के बाद उसकी बीबी हमीदा बानू बेगम ने हुमायूँ का मकबरा बनाया जो ऐतिहासिक ईमारतो में से एक है।
FAQ
हुमायूँ का जन्म कब हुआ था ?
हुमायूँ का जन्म 6 मार्च, सन् 1508 को काबुल में हुआ था।
हुमायूँ की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
हुमायूँ की मृत्यु 1 जनवरी 1556 को दीन पनाह भवन के सीढ़ियों से गिरने से हुई थी।
चौसा का युद्ध कब हुआ था ?
चौसा का युद्ध 26 जून 1539 को हुआ था।
बिलग्राम का युद्ध कौन जीता ?
बिलग्राम का युद्ध 1540 में लड़ा गया था जिसे शेरशाह सूरी ने जीता।
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सब को मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के पुत्र हुमायूँ के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सब ने हुमायूँ कौन था, हुमायूँ का जीवन परिचय और इतिहास और उससे जुड़ी अन्य जानकारी के बारे में भी जाना मुझे उम्मीद है की आपको यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा।
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