मुग़ल शासक शाहजहाँ का इतिहास - Shahjahan History in Hindi.

मुग़ल शासक शाहजहाँ का इतिहास - Shahjahan History in Hindi.

शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य का पांचवा शासक था जो अकबर का पौत्र और जहाँगीर का पुत्र था। शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य का एक लोकप्रिय शासक था शाहजहाँ को लोग उसके द्वारा बनवाए गये प्रेम के प्रतिक ताजमहल के लिए भी याद करते है। आज के समय में ताजमहल दुनिया के सात अजूबे में से एक है इसकी खासियत यह है की इतने साल बीत जाने के पश्चात भी इसपे लगे संगमरमर के रंग आज भी वाइट ही है

जहाँगीर के मृत्यु के कुछ दिन बाद ही 35 वर्ष की आयु में शाहजहाँ  को 1628 में मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर बैठाया गया। शाहजहाँ के शासनकाल को  भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल के रूप में भी जाना जाता है यही नही उसके शासनकाल को स्वर्णिम युग भी कहा जाता है। 

शाहजहाँ  ने अपने कार्यकाल के अवधी के दौरान कला और संस्कृति को जमकर बढ़ावा देता था तथा उसने 30 वर्ष के  शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य के विस्तार भी बहुत अच्छे ढंग से किया था तो आइये जानते है शाहजहाँ से जुड़ी और भी महत्वपूर्ण तथ्य तथा उसके इतिहास के बारे में -



शाहजहाँ का जीवन परिचय.


पूरा नाम


अल् आजाद अबुल मुजफ्फर साहब उद्दीन बेग़ मुहम्मद ख़ान ख़ुर्रम



जन्म



5 जनवरी, 1592 ईसवी,


जन्म स्थान



लाहौरपाकिस्तान


माता-पिता



जगत गोसाईं, जहाँगीर

 

 

 

 

पत्नियाँ


मुमताज महल, कन्दाहरी बेग़म,

मुति बेगम कुदसियाँ बेगम,

हसीना बेगम,फतेहपुरी महल,

अकबराबादी महल, श्रीमती मनभाविथी.

सरहिंदी बेगम

 



पुत्र/पुत्रियाँ 


पुरहुनार बेगम, दारा शिकोहशाह शुजा

 रोशनारा बेगम, जहांआरा बेगम,

औरंग़ज़ेब मुराद बख्श,

गौहरा बेगम

 


मृत्यु



22 जनवरी 1666 आगरा किला

आगरा, भारत



शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य का पांचवा शासक था जिसका पूरा नाम अल् आजाद अबुल मुजफ्फर साहब उद्दीन बेग़ मुहम्मद ख़ान ख़ुर्रम था। शाहजहाँ का जन्म 5 जनवरी, 1592 ईसवीलाहौरपाकिस्तान में हुआ, इसके पिता का नाम जहाँगीर और माता का नाम जगत गोसाईं था। शाहजहाँ के मृत्यु के पश्चात उसके बेटे औरंगजेब ने मुग़ल साम्राज्य के शासन को आगे बढाया था

शाहजहाँ का बचपन और शुरूआती जीवन.

शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य के सबसे प्रभावी शासक अकबर का पौत्र था जिसका जन्म  5 जनवरी, 1592लाहौरपाकिस्तान में हुआ था कहा जाता है की शाहजहाँ का पालन पोषण एक कुशल योधा की तरह किया गया था और इसका जिम्मा खुद अकबर ने ले रखा था अकबर ने ही उसे सबसे पहले खुर्रम कहकर बुलाया था जिसके बाद उसे सभी खुर्रम बुलाने लगे थे शाहजहाँ और अकबर दोनों में काफी नजदीकियां थी जिसके चलते शाहजहाँ, जहाँगीर से ज्यादा अकबर से प्यार करता था।  

शाहजहाँ ने अपने पिता की तरह ही उससे लड़ झगड़ कर बाद में शासन प्राप्त किया था उसने सबसे पहली शादी नूरजहाँ के भाई की पुत्री 'आरज़ुमन्द बानो' से 20 वर्ष की आयु में किया था। आरज़ुमन्द बानो से शादी के कुछ समय बाद उसने उसका नाम मुमताज़ महल कर दिया जो बाद में इसी नाम से इतिहास में विख्यात हुई

मुमताज़ महल के अलावा शाहजहाँ ने कई और शादियां किया जिससे उसके कई पुत्र और पुत्रियाँ भी प्राप्त हुई उसी में से एक था औरंगजेब जो बाद में जाकर मुग़ल साम्राज्य का नया शासक बना था। शाहजहाँ जीवन का अधिकांश समय ऐशो आराम में गुजारा था वह युद्ध से ज्यादा कला और संस्कृति से प्यार करता था उसके शासनकाल में देश विदेश के एक से बढ़ कर एक प्रख्यात व्यक्ति दरबार में आते थे। 

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मुग़ल शासक के रूप में शाहजहाँ.  

जहाँगीर की सबसे प्रिये बेगम नूरजहाँ नही चाहती थी की शाहजहाँ मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर बैठे परन्तु शाहजहाँ चाहता था की वही मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर बैठे इसी को लेकर दोनों में षड़यंत्र होते रहता था परन्तु दोनों कामयाब नही हो पा रहे थे

सन 1622 में शाहजहाँ ने शासक बनने की चाह में आक्रमण कर दिया परन्तु वह हार गया और नूरजहाँ की नजरो में सीधे तौर पे आ गया था जिससे वह और भी सावधान और सतर्क रहने लगी थी। इतिहासकारों की माने तो उनका कहना था की इसके बाद शाहजहाँ ने आक्रमण नही किया परन्तु 1627 में जहाँगीर के मौत पश्चात उसने अपने ससुर आसफ खां के द्वारा अपने सभी भाइयो जो उतराधिकारी बनना चाहते थे सभी को मरवा दिया था। 

अपने सभी भाइयो को मरवाने के बाद वह 19 जनवरी सन 1628 को मुग़ल साम्राज्य का पांचवा शासक बना था जिसके बाद उसे मुहम्मद साहिब किरन-ए-सानी की उपाधि से नवाजा गया था। शाहजहाँ ने मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर 30 वर्ष 19 जनवरी 1628 - 31 जुलाई 1658 तक शासन किया और इस दौरान उसने साम्राज्य का विस्तार भी किया साथ साथ में उसने कला और संस्कृति को एक अलग ही मुकाम दिलाया था। शाहजहाँ के शासनकाल को  भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल के रूप में भी जाना जाता है यही नही उसके शासनकाल को स्वर्णिम युग भी कहा जाता है 

शाहजहां- मुमताज की कहानी.

शाहजहाँ और मुमताज महल के प्रेम की कहानी विश्व विख्यात है शाहजहाँ ने मुमताज़ से शादी सन 1612 में मात्र 20 की आयु में किया था शादी के समय मुमताज़ का नाम आरज़ुमन्द बानो था परन्तु शादी के बाद शाहजहाँ ने उसका नाम बदल कर मुमताज़ रख दिया था

मुमताज़ बेहद ही खुबसूरत थी इसी कारण शाहजहाँ उससे बहुत ही ज्यादा प्यार करता था उसके बिना राज्य में कोई भी निर्णय नही लिया जाता था ना ही उसके बिना शाहजहाँ कही जाता था। उसके शासनकाल के दौरान किसी भी शाही फरमान पर मुमताज़ का मुहर लगा होता था ऐसा नही होने के बाद उसे शाही फरमान नही माना जाता था

परन्तु मुमताज़ महल ज्यादा दिन तक जीवित नही रही और सन 1631 में बच्चे को जन्म देते वक्त दर्द के कारण उसकी मृत्यु हो गयी थी यह खबर सुन शाहजहाँ पागल हो गया था और वह मुमताज़ के मौत के गम में कई सालो तक शोक में डूब गया था। वह मुमताज़ के मौत के बाद अपने सारे ऐशो आराम  कई वर्षो तक त्याग दिया था और हमेशा मुमताज़ को ही याद करते रहता था उसने अपने पुरे साम्राज्य में शोक का एलान करवा दिया था और उसके साथ पूरा मुग़ल साम्राज्य मुमताज़ के गम में 2 से अधिक सालो तक गम मनाया था    

ताजमहल का निर्माण. 

ताजमहल का निर्माण मुग़ल वंश के पांचवे शासक शाहजहाँ के द्वारा किया गया था उसने अपनी बेगम मुमताज़ के मृत्यु के पश्चात उसकी याद में इसका निर्माण करवाया था। शाहजहाँ संस्कृति और कला को बहुत ही बढ़ावा देता था ऐसे में उसने अपनी बेगम की याद में एक ऐसे मकबरे का निर्माण करने का सोचा जिसके जैसा दूसरा उस समय पुरे विश्व में नही था इसके लिए उसने कई कलाकार और शिल्पकार को न्युक्त किया था

ताजमहल एक बेहद ही खुबसूरत रचना है जो आगरा, भारत में स्थित सफ़ेद संगमरमर का बना एक अद्भुत ईमारत है। इसकी अनेको खूबी है जो इसे दुनिया के सात अजूबे में शामिल करता हैताजमहल में लगा सफ़ेद संगमरमर इतने वर्ष बीत जाने के पश्चात भी काला नही पड़ा है वह ज्यो का त्यों सफ़ेद है    

ताजमहल को बनाने में करीब 23 वर्ष का समय लगा था और यह 1653 में बनकर तैयार हुआ था इसे बनाने के लिए भारतीय, प्राचीन और मुगलकालीन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था जिसमे हजारो हज़ार की संख्या में कारीगर ने भाग लिया था तब जाकर यह भव्य और खुबसूरत ईमारत बनकर तैयार हुआ था 

कुछ इतिहासकारों के अनुसार 20 हज़ार से अधिक मजदूर ने इसका निर्माण किया था और उन सभी के हाथ शाहजहाँ ने यह कह कर कटवा दिया था की ये लोग कोई दूसरा ऐसा ही ईमारत नही बना सके। परन्तु इसके पीछे की कहानी जो भी हो इसमें बहुत ही सुन्दर और भव्य कला का समावेश है

शाहजहां शासन के समय में हुए कुछ विद्रोह.

जिस तरह अन्य मुगलकालीन शासक के समय में भी विद्रोह हुए थे ठीक उसी तरह शाहजहाँ के समय में भी कुछ विद्रोह हुए थे जिसके बारे में निचे में जिक्र किया गया है।

  • शाहजहाँ के समय में हुए सबसे चर्चित विद्रोह बुंदेलखंड का विद्रोह है जो 1628 से 1636 के बिच हुआ था। बुंदेलखंड का विद्रोह भड़काने का श्रेय वीरसिंह बुन्देला के पुत्र जुझार सिंह को जाता है जिसने प्रजा के बहुत से धन हड़प लिया था। जब उस समय उसे जाँच का आदेश दिया गया तो उसने ठुकरा दिया था जिसके बाद शाहजहाँ ने आक्रमण कर दिया और उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था तब जाकर यह विद्रोह शांत हुआ था।  
  • इसी तरह एक और विद्रोह 1628 से 1631 के बिच हुआ था जब अफगान सरदार ख़ानेजहाँ लोदी जो उस समय मालवा का सूबेदार था उसे दरबार में सम्मान नही मिलने के कारण यह विद्रोह किया था जो   1631 में माधोसिंह के द्वारा मारा गया था जिसके बाद यह विद्रोह शांत हुआ था।    
  • 1630 से 1632 के बिच में डक्कन एवं गुजरात में भयंकर आकाल का सामना करना पड़ा था जिससे कई इलाके भूख की चपेट में आ गया था और कुछ तो पूरी तरीके से वीरान हो गया था। 

साम्राज्य विस्तार.

शाहजहाँ 1628 में शासक बनने के बाद सबसे बड़ी विजय 1633 में हासिल किया जब उसने अंतिम निज़ाम शाही सुल्तान हुसैनशाह को हराकर अहमदनगर पर विजय हासिल उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया था। यही नही उसने हुसैनशाह को बंदी बनाकर ग्वालिर के किला में बंद कर दिया था।

इसके बाद 1635 में शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने अहमदनगर से युद्ध छेड़ा परन्तु उनके हाथ कुछ नही आया और उन्हें बीजापुर जाना पड़ गया। लेकिन उनका साथ दे रहे गोलकुण्डा एवं बीजापुर के शासक के बारे में पता चलते ही शाहजहाँ उनके ऊपर भी आक्रमण करना चाहता था लेकिन  गोलकुण्डा के शासक ने कुछ शर्तो पर शाहजहाँ से संधि कर आक्रमण को टाल दिया था। 

गोलकुण्डा के शासक को दिया गया शर्त निम्नलिखित है-

  • गोलकुण्डा के शासक के पुत्री का विवाह औरंगज़ेब के पुत्र से किया गया।
  • कर के रूप में शाहजहाँ को  6 लाख रुपए का वार्षिक देना पड़ा था।
  • शाहजहां के नाम का सिक्कों को शामिल किया गया।
  • बीजापुर के विरुद्ध सैन्य करवाई में भाग लेना पड़ा।

1636 में शाहजहाँ ने दूसरी बड़ी युद्ध जीता था जब उसने बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह को अधीनता स्वीकार नही करने के जुर्म में उसपे हमला कर दिया था और आदिल शाह को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था जिसके बाद में आदिल शाह ने वार्षिक कर देना और शाहजी भोंसले को मदद नही करने के बात पर 11 जुलाई, 1636 को संधि कर लिया था।

शाहजहाँ द्वारा किए गए कुछ कार्य.

  • शाहजहाँ ने गौहत्या से प्रतिबन्ध हटा दिया था तथा हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
  • हिन्दु से मुसलमान में परिवर्तित होने के लिए एक अलग विभाग बनाया था।
  • पुर्तग़ालियों के कारण उसने आगरा के गिरिजाघर गिरवा दिया था।
  • शाहजहाँ ने पायबोस और सिजदा प्रथा को ख़त्म किया था। 

शाहजहाँ की मृत्यु.

शाहजहाँ के मृत्यु का खास वजह उसका पुत्र औरंगजेब था औरंगजेब अपने माता पिता का छठा संतान था और क्रूर स्वभाव का भी था इसी वजह से शाहजहाँ चाहता था की उसका पुत्र दारा शिकोह मुग़ल वंश का अगला शासक बने क्योकि वह स्वभाव में दयालु और बुद्धिमान तथा इन सभी से ज्यादा  शिक्षित था। 

इतिहास के अनुसार औरंगजेब ऐसा नही चाहता है और वह जनता था की यदि उसके पिता गद्दी पर रहे तो दारा शिकोह ही अगला शासक बनेगा इसलिए उसने 1658 में बर्बरता का परिचय देते हुए अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर आगरा किला में बंद कर दिया था जहाँ उसके और मुमताज़ से जन्म ली बेटी जहांआरा उसकी सेवा करती थी

परन्तु 8 साल से कैद में जी रहा शाहजहाँ 22 जनवरी 1666 को 74 वर्ष की आयु में आगरा किला, आगरा, भारत में अपना दम तोड़ दिया और शाहजहाँ को भी उसकी बेगम मुमताज़ के कब्र के पास ही दफनाया गया   

निष्कर्ष

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सब को मुग़ल साम्राज्य के शासक शाहजहाँ के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सब ने शाहजहाँ कौन था, शाहजहाँ का जीवन परिचय और इतिहास और उससे जुड़ी अन्य  जानकारी के बारे में भी जाना साथ में आपसब को प्रेम का प्रतिक और दुनिया का सात अजूबो में से एक ताजमहल के कहानी के बारे में भी बताया गया मुझे उम्मीद है की आपको मुग़ल शासक शाहजहाँ से जुड़ा यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा।

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