डीएनएस क्या है? डीएनएस का फुल फॉर्म क्या होता है - Full Form of DNS.

डीएनएस क्या है? डीएनएस का फुल फॉर्म क्या होता है - Full Form of DNS.

आज के इस आधुनिक युग में जिस तरह इन्टरनेट का इस्तेमाल ने सबके सोचने और समझने की तरीका को बदल कर के रख दिया है। बच्चो के पढाई, बिज़नस, शादी-विवाह का निमंत्रण कंपनी के मीटिंग आदि कई चीजे है जो ऑनलाइन होने लगा है और इसमें इन्टरनेट की भूमिका सबसे अहम् है क्योकि इसके बगैर कुछ भी कर पाना संभव नही था।

इन सभी कामो के लिए किसी वेबसाइट या फिर एप्लीकेशन की जरुरत पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते है कंप्यूटर हमारी भाषा को नही समझता है उसे बस नंबर की ज्ञान होता है। और ऐसे में किसी वेबसाइट के IP एड्रेस को याद कर पाना बहुत मुस्किल भरा काम था। 

इसके लिए इसके alternate के रूप में DNS का यूज़ किया जाता है। जो वेबसाइट को एक्सेस करने में सहायता प्रदान करता है। तो चलिए विस्तार से जानते है आखिर यह DNS होता क्या है और कैसे काम करता है तथा इसका फुल फॉर्म क्या होता है।

DNS का फुल फॉर्म क्या होता है. 

DNS का पूरा नाम DOMAIN NAME SYSTEM होता है इसका काम यह होता है की जब भी कोई यूजर सर्च इंजन में किसी वेबसाइट का डोमेन नाम लिख कर सर्च करता है तो DNS सर्वर उस नाम को IP एड्रेस में बदल देता है जिसके बाद सर्वर यूजर को सही वेबसाइट पर लेकर चला जाता है।

जैसे जब भी कोई यूजर learningyug.com ब्राउज़र में सर्च करता है तो DOMAIN NAME SYSTEM उस डोमेन name को IP एड्रेस में बदलता है। क्योकि कोई भी ब्राउज़र IP एड्रेस (195.167.1.1) के सहायता से ही उस वेबसाइट के कंटेंट को लोड करता है।

DNS क्या है.



Domain name system एक तरह का प्रोटोकॉल है जो इन्टरनेट के बुक की तरह काम करता है डोमेन name यानि की google.com ऐसे किसी भी डोमेन name को एक यूनिक IP एड्रेस असाइन होता है और यह IP एड्रेस किसी और डोमेन को असाइन नही किया जाता है 

एक ब्राउज़र पर जब भी कोई यूजर इस तरह के डोमेन name को सर्च करता है तो DNS एक  कनवर्टर की तरह कार्य करता है और उस डोमेन name को IP एड्रेस में तब्दील कर देता है जिससे ब्राउज़र के लिए उस IP एड्रेस को पहचान करना आसान हो जाता है 

किसी भी यूजर के लिए किसी वेबसाइट का IP एड्रेस याद रख पाना बहुत ही मुस्किल भरा होता है क्योकि उसमे बहुत से नंबर और किसी IP में अल्फाबेट्स भी शामिल होते है जो इसे और भी जटिल बना देता है 

जैसे यदि किसी को www.google.com याद करने को बोला जाये तो वह इसे कुछ ही सेकंड्स के अन्दर याद कर लेगा और उसे नही भूल सकता है परन्तु उसे www.google.com के स्थान पर उसे IP एड्रेस 74.125.200.103 इसे याद करने को बोला जाये तो कई मिनट लग जायेगा और इसे कुछ समय बाद भूल भी जायेगा ऐसे में DNS एक मात्र विकल्प बच जाता है

कुछ IP एड्रेस तो ऐसे भी होते है जिसे याद कर पाना ही बहुत मुस्किल भरा है जैसे IPV6 के एड्रेस कुछ इस प्रकार होते है 2400: ca00: 2048: 1 :: c625: d7a4 जिसमे नंबर और अल्फाबेट्स दोनों शामिल होते है जो यूजर के याद करने की कोशिश को ही समाप्त कर देता है

जिस तरह इन्टरनेट पुरे विश्व में फैला है ठीक उसी प्रकार DNS सर्वर भी सभी जगह फैला है और सभी सर्वर आपस में एक दुसरो के साथ कनेक्टेड होता है एक जगह इनफार्मेशन नही मिलने पर दुसरे से संपर्क स्थापित करता है। DOMAIN NAME SERVER को और भी कई नामो से जाना जाता है जैसे domain name system server, name server आदि शामिल है

DNS का इतिहास.

DNS का इतिहास ज्यादा पुराना नही है इसका आविष्कार सन 1983 में Paul Mockapetris के द्वारा किया गया था Paul Mockapetris एक अमेरिकन वैज्ञानिक थे। डोमेन name सिस्टम के खोज के पीछे के मेन मकसद लोगो को हो रही परेशानी से निजाद दिलाना था क्योकि IP एड्रेस में नंबर्स होने की वजह से इसे याद कर पाना बहुत मुस्किल था।

दरअसल 1980 के दशक से पहले इन्टरनेट का यूज़ ज्यादा नही होता था जिससे लोगो को छोटे आकर के आईपी एड्रेस याद करना पड़ता था लेकिन इसके बाद इन्टरनेट का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा और आईपी एड्रेस का आकार भी बढ़ने लगा जिससे लोगो को याद करने परेशानी होने लगी थी।

Paul Mockapetris के आविष्कार के बाद सन 1984 में Douglas Terry, Mark Painter, David Riggle, और Songnian Zhou ने मिलकर सबसे पहले उनिक्स नेम सर्वर को लिखा था जिसे Berkeley इन्टरनेट नेम सर्वर भी कहा जाता है।

DNS कैसे काम करता है.

इन्टरनेट से जुड़े जितने भी चीज मौजूद है सभी का एक अपना आईपी एड्रेस होता है और सभी अपने आप में यूनिक होते है जिससे उसे कम्यूनिकेट करना और खोजना आसान होता है

जैसे जब भी हम किसी वेबसाइट के डोमेन को सर्च करते है डोमेन नेम सर्वर उसे आईपी एड्रेस में बदल देता है तो चलिए जानते है इसके प्रोसेस के बारे में -

  • कोई भी यूजर जब ब्राउज़र में जाकर किसी वेबसाइट या किसी डोमेन नेम को सर्च करता है जैसे-www.example.com तो ब्राउज़र उस डोमेन के आईपी एड्रेस को सर्च करता है
  • यदि यूजर इस वेबसाइट को पहले विजिट कर चूका है तो वह उसके कैश मेमोरी में save रहता है जिससे उसे वहां से आईपी एड्रेस मिल जाता है 
  • यदि यूजर पहले विजिट नही कर रहा होता है तो उस रिक्वेस्ट को ऑपरेटिंग सिस्टम को ट्रान्सफर कर दिया जाता है
  • ऑपरेटिंग सिस्टम इस ट्रान्सफर को इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर के पास send कर देता है जिसके पास कैश का डाटा स्टोर्ड होता है
  • यदि आईपी एड्रेस यहाँ मिल जाता है तो यह प्रोसेस यही पर समाप्त हो जाता है नही तो वह उसे रूट सर्वर के पास ट्रान्सफर कर देता है
  • इसके बाद रूट सर्वर इस रिक्वेस्ट को डोमेन सर्वर के पास भेज देता है जैसे यदि आप google  सर्च कर रहे तो वह उस रिक्वेस्ट को .com सर्वर के पास भेजता है 
  • रूट सर्वर को जानकारी डोमेन सर्वर से मिल जाता है और वह इस जानकारी को ऑपरेटिंग सिस्टम के पास फॉरवर्ड कर देता है जिससे यूजर आसानी से इस वेबसाइट को ओपन कर पाता है
  • उसके बाद इस वेबसाइट की आईपी एड्रेस cache मेमोरी में स्टोर्ड हो जाता है जिससे अगली बार यूजर के विजिट के दौरान ब्राउज़र इसे डायरेक्ट एक्सेस कर सकता है और ये सारी प्रक्रिया बहुत ही फ़ास्ट होता है  

निष्कर्ष 

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सब को डीएनएस के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सब ने डीएनएस क्या है, यह कैसे काम करता है। डीएनएस का आविष्कार कब हुआ था तथा इसका फुल फॉर्म क्या होता है इसके बारे में भी जाना मुझे उम्मीद है की आपको आज का यह पोस्ट जरुर पसंद आया होगा।

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