अहिल्याबाई होल्कर इतिहास, जीवन परिचय और कहानी - Biography, story and History of Ahilyabai Holkar in Hindi
मनुष्य के जीवन मे कई तरह के परेशानियाँ हमेशा आती रहती है और कई लोग उससे भाग जाते है परंतु ऐसा नहीं करना चाहिए, ज्यादा नहीं थोड़ा तो उस परेशानी का सामना करना चाहिए क्योंकि यही सब चीजे हमे जीवन जीने की कला सिखाती है।
इसका एक बहुत ही शानदार उदाहरण है अहिल्याबाई होल्कर जिन्हे लोग महारानी अहिल्याबाई के नाम से भी जानती है। इन्होंने अपने जीवन काल मे बहुत ही परेशानियों का सामना किया परंतु ये कभी भी इससे पिछे नहीं हटी और इस परेशानियां का डट कर मुकाबला की और उस पर जीत प्राप्त की थी।
अहिल्याबाई होल्कर लोगों की सेवा मे हमेशा तात्पर्य रहती थी और उनके इसी योगदान के चलते उन्हे सम्मानित भी किया गया उनके नाम पर भारत मे डाक टिकट जारी किया गया साथ मे उनके नाम पर लोगों को अवॉर्ड भी प्रदान किया जाता है।
तो चलिए और भी विस्तार से जानते है अहिल्याबाई होल्कर इतिहास, जीवन परिचय और उनसे जुड़ी कहानी के बारे मे -
अहिल्याबाई होल्कर का जीवन परिचय.
अहिल्याबाई होल्कर का पूरा नाम अहिल्याबाई खांडेराव होल्कर था जिनका जन्म 31 मई, 1725 को चौंडी नामक गाँव मे हुआ था जो अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत मे स्थित है वही इनका देहांत 13 अगस्त 1995 को हुआ था।
अहिल्याबाई होल्कर एक बड़े प्रांत की महारानी नहीं होते हुए भी जो कार्य की वो बहुत ही आश्चर्यजनक था उनका विवाह सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। महारानी होल्कर के पिता का नाम मंकोजी राव शिंदे और माता का नाम सुशीला शिंदे था उनके पिता अपने गाँव के पाटील थे।
अहिल्याबाई होल्कर को उनके पिता मंकोजी राव शिंदे से बचपन से ही हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा, दया भाव और अच्छे संस्कार मिले थे जिसे उन्होंने हमेशा अपने जीवन मे याद रखा और उनके कहे अनुसार चलते रही।
अहिल्याबाई होल्कर का इतिहास.
महारानी अहिल्याबाई खांडेराव होल्कर मालवा साम्राज्य की महारानी थी वह के महान शासक थी उनके जीवन मे कई परेशानियाँ भी आई परंतु वे उन सब से बिना मुहँ मोड़े उसका डट कर मुकाबला की और अपने जीवन मे आगे बढ़ते रही।
अहिल्याबाई होल्कर का विवाह मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव होल्कर से हुआ था इनके विवाह के कुछ वर्ष पश्चात सन 1745 मे महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम मालेराव होल्कर रखा गया और इसके कुछ वर्ष बाद इनके घर एक पुत्री का जन्म हुआ जिनका नाम मुक्ताबाई रखा गया था।
अहिल्याबाई अपने शुरुआती जीवन से ही समाज की सेवा करती थी इन्होंने हमेशा अपने साम्राज्य की रक्षा विदेशी आक्रमणकारियो से की और इस क्रम मे उन्होंने कई बार युद्ध मे भाग भी लिया था।
सन 1754 मे कुंभेर की लड़ाई मे खंडेराव होल्कर का मृत्यु हो गया जिसके बाद पूरे साम्राज्य की जिम्मेदारी इनके ऊपर आ गई थी। परंतु इनके ससुर मल्हारराव होलकर ने इनका मदद हमेशा किया लेकिन समय खराब होने पर चीजे उल्टा होना शुरू हो जाता है और यही अहिल्याबाई होल्कर के साथ भी हुआ और इनके पति के मृत्यु के कुछ वर्ष पश्चात इनके ससुर का भी देहांत हो गया था।
इतना सबकुछ होने के बाद मे भी वह शासन व्यवस्था को अपने हाथों मे रख कर अपने पुत्र के साथ अच्छे से चला रही थी। इसी क्रम मे उनके पुत्र मालेराव होल्कर का देहांत सन 1766 मे हो जाता है जिससे वह बहुत ही टूट जाती है, परंतु हार नहीं मानी और 1767 मे तुकोजी होल्कर को नया सेनापति बनाया और सम्राज्य को आगे लेकर गई।
अहिल्याबाई होल्कर ने 1767 से लेकर 1795 तक केवल और केवल जनता के लिए काम करती रही और उनके द्वारा किया गया कार्य आज भी लोगों के द्वारा याद किया जाता है। कहा जाता है वह हार रोज अपने प्रजा की बात सुनती थी और उनके समस्याएं को सुलझाने का कोशिश करती थी जिसके चलते वह अपने राज्य मे उदारता और प्रजावत्सलता के लिए जानी जाती थी।
अहिल्याबाई होल्कर ने अपने शासन कल के दौरान राजधानी को महेश्वर लेकर चली गई थी जहां जाकर उन्होंने शानदार अहिल्या महल का निर्माण करवाया और लोगों के लिए विश्राम गृह, सड़क, कुएं और किले आदि का निर्माण करवाया। वह लोगों के साथ मिलकर सभी तरह के पर्व मनाती थी और लोगों के बीच धन, कपड़े का दान देती थी। उनके शासनकल के दौरान उनकी राजधानी साहित्य-कला और संगीत आदि का गढ़ बन गया था जिससे लोगों को काफी मुनाफा होता था जिससे वे लोग मंदिर आदि कार्यों के निर्माण के लिए दान के रूप मे देते थे।
अहिल्याबाई होल्कर का मानना था की वह प्रजा की सेवक है प्रजा पुत्र के समान होता है इसलिए वह अपने जीवन को प्रजा के लिए समर्पण कर दिया था। उन्होंने समाज मे विधवा के लिए एक अलग ही पहचान दिलवाया था साथ मे उनके शासन के दौरान प्रजा मे जात-पात का कोई मसला नहीं था सभी लोग को बराबर देखा जाता था।
अहिल्याबाई जिस राज्य की महारानी थी वह कोई बड़ा राज्य नहीं था फिर उस राज्य को और साथ मे अहिल्याबाई होल्कर का नाम आदर और सम्मान के साथ लेते थे। उन्होंने कई मंदिर को निर्माण करवाया, आक्रमणकारियो के द्वारा तोड़े और लूटे गए मंदिरों का निर्माण नए सिरे से करवाया।
वह बहुत शिव भक्त थी इसी कारण वह राज्य के किसी कार्य मे अपने हस्ताक्षर के स्थान पर शिव का नाम लिखती थी उनके राज्य मे सिक्कों पर शिवलिंग और नंदी का चित्र अंकित था जो शिव के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
अहिल्याबाई होल्कर जानती थी की भविष्य मे पेशवा उनके राज्य पर आक्रमण जरूर करेंगे इसलिए उन्होंने स्त्रियों की एक फौज बनाई थी। एक बार जब उन्हे पता चला की पेशवा आक्रमण करने वाले है तो उन्होंने उनके नाम एक पत्र लिखा और बताया की यदि आप जग हसाईं करना चाहते है तो आक्रमण जरूर करे। क्योंकि आप जीते या हारे लोग आपके इस कार्य को हमेशा निंदा की नजर से ही देखेंगे और बोलेंगे की स्त्रियों से हारा या फिर जीता। अहिल्याबाई होल्कर के इस पत्र को पढ़कर पेशवा ने उनके राज्य पर आक्रमण नहीं किया था इस तरह उन्होंने अपने बुद्धि और चतुराई से अपने राज्य को एक बार फिर से बचा लिया था।
अहिल्याबाई होल्कर का योगदान.
अहिल्याबाई होल्कर ने समाज के प्रगति और उन्नति मे महत्वपूर्ण योगदान निभाया साथ ही साथ उन्होंने कई भव्य मंदिर, सड़क आदि का निर्माण करवाया था।
जैसा ही आप सभी ने इंदौर के बारे मे देखा और सुना है वास्तव मे इंदौर ऐसा शहर नहीं था यह एक छोटा सा गाँव था परंतु अहिल्याबाई होल्कर ने इस छोटे से गाँव को एक शानदार और समृद्ध शहर बनाने मे अपना योगदान दिया था। उन्होंने यहाँ के दशा और दिशा सुधारने मे कई तरह के योगदान जैसे- शिक्षा, सड़क, खाना-पीना आदि का व्यवस्था करवाया था।
उन्होंने अपने राज्य के अलावा कई और भी जगहों पर निर्माण कार्य करवाए थे उनका उदेश्य भारत के सभी जगहों पर सामाजिक कार्य करना था और उन्होंने भारत के कई राज्यों मे मंदिर, कुआं, सड़क आदि का निर्माण करवाया था।
उन्होंने विधवा महिलाओ के कानून मे भी बदलाव करवाया था उनसे पहले कानून था की यदि कोई महिला विधवा हो जाती है और उनका कोई पुत्र नहीं है तो उसका सर धन सरकारी कोष मे चला जाता था। परंतु उन्होंने इसे बदल दिया जिससे विधवा महिला अपना हिस्सा ले सकती थी इसके अलावा उन्होंने महिला के शिक्षा के लिए भी काफी योगदान दिया था।
अहिल्याबाई होल्कर का उपलब्धियां.
अहिल्याबाई होल्कर ने अपने शासन कल के दौरान मालवा मे सड़के, कुएं और कई किले का निर्माण करवाया, इसके अलावा उन्होंने कई मंदिर, धर्मशाला, तालाब, विश्राम गृह आदि का निर्माण करवाया।
उन्होंने हिमालय पर भी कुछ निर्माण करवाया था साथ ही साथ उनकी सबसे बड़ी उबलब्धियां के रूप मे काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण को जाता है। जबकि इसके अलावा उन्होंने गया, अयोध्या, सोमनाथ, द्वारका, हरिद्वार, बद्रीनारायण, रामेश्वर, मथुरा और जगन्नाथपुरी आदि के निर्माण मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया गया था साथ मे लोगों को अवॉर्ड भी दिया जाता है इसके अलावा इनके नाम पर सरकार के द्वारा स्कीम भी चलाया जाता है।
उस समय के लोग इन्हे देवी के रूप मे जानते थे क्योंकि इन्होंने अपने शासन के दौरान ऐसे कार्य किए जिसे किसी राजा के द्वारा भी नहीं किया गया था। जब वह शासन मे आई थी तब अन्य जगहों पर राजा के द्वारा प्रजा पर काफी जुल्म किया जाता था परंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया और पूरा जीवन उन्ही के सेवा मे बीता दिया और कई मंदिर, बाबड़ी, विश्राम गृह का निर्माण करवाया। जिसके चलते कई राजा उन्हे अंधविश्वासी भी कहते थे क्योंकि उनके राज्य की देखा देखि मे अन्य राज्य मे भी इस तरह के चीजों की मांग होने लगा था।
अहिल्याबाई होल्कर को उस समय के लोग देवी के रूप मे मानता था जिसका नतीजा यह हुआ था की उनके जीवन कल के दौरान ही लोग उनकी पूजा करने लगे थे।
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु.
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त सन 1795 को इंदौर मे हुआ था इनकी मृत्यु अचानक तबीयत खराब होने के कारण 70 वर्ष की आयु मे हुआ। आज भी लोग इन्हे इनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए याद करता है।
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सब को अहिल्याबाई होल्कर के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सब ने अहिल्याबाई होल्कर का इतिहास, अहिल्याबाई होल्कर कौन थी, अहिल्याबाई का जीवन परिचय उनसे जुड़ी अन्य जानकारी के बारे में भी जाना।
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