सारागढ़ी युद्ध का इतिहास, सारागढ़ी की लड़ाई, सारागढ़ी की लड़ाई कब हुई - Saragarhi Yudh, History of Saragarhi in Hindi
दोस्तों आज के इस पोस्ट मे आप सभी को सारागढ़ी युद्ध के बारे मे बताया गया है हमारे देश मे एक से बढ़ कर एक युद्ध लड़े गए उसी मे से एक सारागढ़ी का युद्ध है। सारागढ़ी युद्ध अपने आप मे एक मिसाल है क्योंकि यहाँ मात्र 21 सिखों ने 10000 से अधिक अफगानियों को धूल चटा दिए थे और अपने अंतिम साँस तक लड़ते रहे थे।
इस युद्ध को इतिहास के सबसे अच्छा लास्ट स्टैन्ड युद्ध मे से एक माना जाता है क्योंकि 21 लोगों के लिए 10000 सैनिकों से लड़ना आसान नहीं था परंतु वे सभी लड़ाकू वीर योद्धा मृत्यु तक लड़ते रहे थे और उस किला को अफगानी लुटेरों से बचा कर रखा था।
सारागढ़ी युद्ध का इतिहास का हर भारतीयों को जानना बेहद ही जरूरी है इसलिए आज आप सभी को इस युद्ध के बारे मे विस्तार से बताया गया है जिसे आप सभी अंत तक जरूर पढे, तो चलिए जानते है सारागढ़ी युद्ध का इतिहास - Saragarhi Yudh in Hindi
सारागढ़ी का युद्ध कब हुआ था.
सारागढ़ी का युद्ध ब्रिटिश इंडियन सैनिक और अफ़गान ओराक्जजातियों के बीच सन 12 सितम्बर 1897 को लड़ा गया था उस समय भारत आजाद नहीं था इस कारण उस समय भारतीय सैनिक अंग्रेजों के तरफ से लड़े थे और उन्हे ब्रिटिश इंडियन सैनिक कहा जाता था।
इस युद्ध मे लड़ने वाले भारतीय 36वीं सिख बटालियन के चौथी बटालियन के महज 21 जवान थे जिन्होंने सभी अफगनियों को धूल चटा के रख दिया था।
इसे भी पढे -
अहिल्याबाई होल्कर इतिहास, जीवन परिचय और कहानी
शिवाजी महाराज का जीवन परिचय, इतिहास
21 सिख जवानों के नाम.
भारत देश आज भी उन सभी 21 सिख जवानों के कुर्बानी को याद करता है जिन्होंने उस दिन वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी जान गवाई थी। इस युद्ध मे लड़ने वाले सभी जवानों ने काफी वीरता से लड़ा था चाहे वह हवलदार ईशर सिंह ह या फिर लांस नायक चन्दा सिंह और सिपाही भगवान सिंह सभी ने अपना योगदान बराबर दिया था।
इन सभी वीर जवानों के याद मे आज भी 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रूप मे मनाया जाता है तो आइए जानते उन सभी 21 वीर जवानों के नाम जिन्होंने इस युद्ध मे हिस्सा लिया था-
- हवलदार ईशर सिंह
- नायक लाल सिंह
- लांस नायक चन्दा सिंह
- सिपाही राम सिंह
- सिपाही नारायण सिंह
- सिपाही गुरमुख सिंह
- सिपाही भगवान सिंह
- सिपाही भगवान सिंह
- सिपाही बूटा सिंह
- सिपाही नन्द सिंह
- सिपाही गुरमुख सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
- सिपाही दया सिंह
- सिपाही भोला सिंह
- सिपाही साहिब सिंह
- सिपाही उत्तम सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
- सिपाही हीरा सिंह
- सिपाही राम सिंह
- सिपाही सुन्दर सिंह
- सिपाही जीवन सिंह
सारागढ़ी युद्ध का इतिहास.
भारतीय इतिहास मे इस युद्ध को शत प्रतिशत सच माना गया है क्योंकि अंग्रेजों का मानना था की हर एक घटना की जानकारी वहाँ से सिपाही गुरमुख सिंह से द्वारा हेलियोग्राफ़ के द्वारा भेजा गया था। जिसमे उनके ऊपर कब हमला हुआ था, कब कौन से सिपाही मारे गए और सबसे अंत मे गुरमुख सिंह ने अपने मरने से पहले भी संकेत भेजे थे।
21 सितंबर 1897 को सिपाही गुरमुख सिंह लॉकहार्ट किले मे एक संदेश भेजते है की उनके ऊपर करीब 10000 अफरीदी और ओरकजई आदिवासियों ने हमला कर दिया है। दरअसल सारागढ़ी उस समय पर लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान फोर्ट के बीच संचार का काम करता था इन दोनों किला को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था।
अंग्रेजों के मुताबिक जब उनके पास हमले का खबर आया तो सारागढ़ी मे मदद पहुंचाना संभव नहीं था इसलिए उन्होंने सभी सिपाहियों को पिछे हटने को बोल दिया परंतु 36वीं सिख बटालियन का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह और अन्य सिपाहियों ने मना कर दिया और अंतिम साँस तक लड़ने की वचन लिया। इस घटना की पूरी जानकारी लॉकहार्ट किले के कर्नल हौथटन को सिपाही गुरमुख सिंह के द्वारा हेलियोग्राफ़ से भेजा गया था।
कहा जाता है की उन हमलवारों का मनसा साफ था की सबसे पहले सारागढ़ी को जितना है जिससे उनका संचार खत्म हो जाएगा उसके बाद लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान फोर्ट पर हमला करना है परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वे लोग सपने मे भी नहीं सोचें थे की मात्र 21 सिपाही उन 10000 पश्तूनों पर भारी पड़ जायेगे।
जब दोनों के बीच युद्ध आरंभ हुआ तो सभी सिख बहुत ही बहादुरी से लड़ रहे थे उनके बहादुरी को देख कर कई बार उनके तरफ से समझौता भी करने के प्रयास किया गया परंतु सिख नहीं माने और युद्ध करते है इनके बहादुरी को देखकर 10000 पश्तूनों भी हैरान हो गए थे।
इन सभी 21 सिखों ने उन्हे 7 घंटों से अधिक इस किला मे घुसने से रोके रखा और करीब 600 पशतुनों को मार गिराया। जब इनके पास गोलियां खत्म हो गई थी तो इन्होंने उससे चाकू से युद्ध किया परंतु एक एक करके सभी मारे जा रहे थे।
हवलदार ईशर सिंह भी इस युद्ध मे बहादुरी से लड़ते हुए मारे गए और कर्नल हौथटन ने बताया था की सबसे अंत मे सिपाही गुरमुख सिंह संदेश भेज था की वे लोग उनके ऊपर किले मे आग से हमला कर रहे है इसके बाद उनहोने भी दम तोड़ दिया और बोलते रहे "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल"
सारागढ़ी किले को जीतते-जीतते अफरीदी और ओरकजई को काफी शाम हो गया था जिससे वे लोग कही और हमला नहीं कर पाए और अगले दिन ब्रिटिश इंडियन सैनिक ने इनके ऊपर हमला कर इस किले को दोबारा अपने कब्जे मे ले लिया था।
सारागढ़ी दिवस.
इन 21 सभी वीर जवानों के याद मे 21 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रूप मे मनाया जाता है इस दिन उन सभी 21 वीर जवानों को याद भी किया जाता है इतना ही नहीं 2017 मे पंजाब सरकार ने इस दिन सरकारी छूटी को घोषणा भी कि।
इस दिन को अंग्रेज भी याद करते है और उन सभी वीरों को सम्मान भी किया था इसके अलावा दुनिया मे लड़ी गई आठ बहादुर लड़ाई मे यूनेस्को द्वारा इस युद्ध को शामिल किया गया था।
साथ मे इस युद्ध मे शाहिद हुए सभी 21 सिपाही को ब्रिटिश के द्वारा इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह पहली बार था की जब किसी बटालियन के सभी योद्धाओ को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया हो। उन सभी के बलिदानों को आज हम भारतीय ही नहीं बल्कि ब्रिटिश और पूरी दुनिया आज भी याद करती है।
निष्कर्ष
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आप सभी को सारागढ़ी युद्ध के बारे में विस्तार से बताया गया और आप सभी ने सारागढ़ी युद्ध का इतिहास, और यह कब हुआ था आदि चीजों के बारे मे विस्तार से जाना है।
इस युद्ध के बारे मे हम सभी भारतीयों को जानना बहुत ही जरूरी है इस लिए आज यहाँ पर आप सभी को सारागढ़ी युद्ध का इतिहास को अच्छे से बताया गया है।
मुझे उम्मीद है की आपको सारागढ़ी युद्ध से जुड़ा यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा। आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इसे शेयर करे और कुछ त्रुटि रह गया हो तो कमेंट करके जरुर बताए।